पूर्व UPCM हे बुआ! इमली का बूटा बेरी का पेड़, इमली खट्टी मीठे बेर, इस जंगल में हम दो शेर…बाकि सब ढेर…
रिपोर्ट – अभिषेक मणि त्रिपाठी।
उत्तर प्रदेश।
UPCM ने गोरखपुर और UP_Dy_CM ने फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में पूरी ताकत तो लगा दी बावजूद इसके भी हार मुंह देखना पड़ा। जी हां कुछ ऐसा ही नजारा हुआ बुधवार का, जब प्रदेश की सबसे जबरदस्त दो सीटों के लिए मतदान गिनती शुरू हुयी। जहाँ एक लंबे समय से कोई परिंदा भी पर नहीं मार पाया। हम बात कर रहे हैं गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव की। ये हार इसलिए भी बीजेपी के लिए बुरी हार हुई क्योंकि गोरखपुर से UPCM ने ख़ुद चुनाव में जीत के लिए हर संभव कोशिश की। जबकि प्रत्याशी भी UPCM ने ख़ुद चुना, लेकिन शायद जनता ने पहले ही सोच लिया अब वो किसका साथ देगी? वही हाल रहा फूलपुर से UP_Dy_CM केसव मौर्या का जिन्होंने कहा कि उनको तो अंदाजा ही नहीं था कि सपा-बसपा साथ होकर फूलपुर में चुनाव जीत लेंगे।
आखिर क्या बनी हार की मुख्य वज़ह?
- विधायकों और बूथ लेबल से लेकर जिले तक कार्यकर्ताओ में असंतोष।
- अपने ही गढ़ में पिछले एक दशक से कोई विकास न होना।
- आज भी इंसेफ्लाइटिस से हो रही बच्चो की मौत।
- जर्जर सड़कें और बिजली कटौती।
- कुछ लोगो का मानना है कि गोरखपुर से उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल का बीमार पड़ना।
- GST के कारण व्यापारियों ने किया विरोध।
- जिले भर के सभी विभागों में अधिकारियो की मनमानी से परेशां जनता।
- घरेलू गैस ,मौरंग ,बालू, ईट और भी घरेलु जरुरत के सामानों का मंहगा होना।
- वहीँ फूलपुर में चुनाव के दौरान कौशलेंद्र पटेल की पहली पत्नी का विरोध।
- बुद्धजीवियों की माने तो अति आत्मविश्वास से दोनों ही जगह हार का मुँह देखना पड़ा।
आखिर क्यों बोला जाता था गोरखपुर UPCM का गढ़?
- सन् 1989 से अब तक रही थी गोरखनाथ पीठ की धाक।
- 1989 से ये सीट UPCM के गुरु बाबा ब्रहमलीन महंत अवेधनाथ बीजेपी के सिंम्बल पर चुनाव नहीं लड़ते थे।
- जिसके बाद 1969,89,91 और 1996 तक इस सीट बरकार रहे महंत अवेधनाथ सिर्फ अंतिम चुनाव बीजेपी के सिंम्बल पर लड़े।
- जिसके बाद तत्कालीन UPCM लगातार 5 बार उस सीट से बीजेपी के सिंम्बल पर चुनाव लड़े और जीते। खास बात ये रही कि उनकी जीत के साथ वोट प्रतिशत भी बढ़ता गया।
- अगर आकड़ो की माने तो 1998 में 26208 मतों से जीते
1999 ये घटकर 7322 रहा।
2004 में 142013
2009 में 220260
2014 में 312783 - गोरखपुर संसदीय क्षेत्र की 29 साल की रिकार्ड जीत गोरक्षपीठ को एक मिसाल की तरह जानी जाती रही।
वहीँ सपा और बसपा के जोड़ ने इस 29 साल के बने रिकार्ड को, रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीत कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। बुधवार 14 मार्च 2018 सपा बसपा के लिए आगामी 2019 चुनाव के लिए एक नया जोश भर दिया। रिकार्ड तोड़ जीत के बाद पार्टी कार्यालय में समर्थको का हुजूम पहुँच गया। समर्थक सपा बसपा का झण्डा लेकर निकल पड़े।
वहीँ देर शाम पूर्व UPCM सपा राष्ट्रीय अध्यक्ष की खुशी का ठिकाना नहीं था। सबसे पहले वो वर्षों की रंजिश भूल बुआ से पहली बार मिलने पहुँचे। जिसके बाद प्रदेश मुख्यालय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूर्व UPCM ने कहा ये जीत “सामाजिक न्याय की जीत है। देश की महत्वपूर्ण लड़ाई में मायावती का समर्थन मिला,,कांग्रेस का साथ मिला पीस पार्टी सहित सभी छोटे दलों ने हमारा सहयोग किया।
- दोनों लोकसभा की जनता ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया और साथ दिया।
- दोनों महत्वपूर्ण जगह की जनता में नाराजगी है इसीलिये वहाँ की जनता ने मिलकर जवाब दिया।
- “मैंने कभी हम लोगो ने बैकवर्ड नही समझा। हम पर बहुत टिप्पड़ी हुई साँप और छछुंदर कहा गया ओरेंगजेब तक कहा गया”।
- ये जनता के सपनों की जीत है, जनता को जो भी वादे किये गए एक भी वादा भारतीय जनता पार्टी द्वारा पुरे नही किये गए।
- दिल्ली में जो संकल्प पत्र बना उस पर कोई काम नही किया। इसीलिये जनता ने हमारे पर भरोसा किया।
- बीजेपी ने समाज मे जहर घोलने का काम किया।
- “राष्ट्रवाद के नाम पर जनता को धोखा देने का काम बीजेपी ने किया”।
- जनता ने हम पर भरोसा किया, उसका हम स्वागत करते हैं।
- जो सरकार जनता को दुख देती है जनता उसे जवाब देती है।
- अच्छे दिन तो आये नहीं, जनता एक हो गई और बीजेपी के बुरे दिन आ गए हैं। वहीँ EVM को लेकर सपा के पूर्व UPCM ने कहा अगर बैलेट पेपर से चुनाव हुए होते तो बीजेपी लाखों वोटों से हारती”।
कुल मिलाकर सपा इस जीत को 2019 में होने वाले चुनाव के लिए वरदान समझ कर खुश है। लेकिन इस बात से भी नहीं नाकारा जा सकता कि सपा-बसपा एक समय के एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे हैं। जिसका साफ़ नजारा खुद पूर्व UPCM बसपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ने उप-चुनाव के पहले कहा कि वो किसी पार्टी का समर्थन नहीं करेंगी, लेकिन जो पार्टी बीजेपी को हार का मुँह दिखाएगी उनकी पार्टी उसका सहयोग करेगी। इससे ये साफ़ है कि अगर सपा की जगह कांग्रेस भी कुछ मतों से पीछे रहती तो बसपा उसका साथ भी देती।
अब देखना ये होगा की बुआ अपना हाथ कब तक भतीजे पर रखती हैं क्योंकि कहीं न कहीं ये तो तय है कि बिना बसपा के स्पोर्ट के सपा ये चुनाव नहीं जीत पाती।