लखपति होने के बावजूद एक-एक पैसे का मोहताज..दिव्यांग की दास्तां सुनकर आप कहेंगे..हे भगवान ! अब बस कर

जन्म से ही तकदीर में अपनी बदकिस्मती लिखाकर लाया…अपने जीवन को ढो रहा 30 साल का ये दिव्यांग युवक… सिर्फ नाम से ही लकी है… इसके अनलकी होने की दास्तां जन्म से शुरु होती है.. अपने लिए इंसाफ की गुहार तक ना लगा पाने वाला दिव्यांग लकी.. आज अपने जीवन जीने के लिए… पैसे-पैसे को तरस रहा है.. क्योंकि उसके लाखों रुपए पर मामा हरजीत सिंह अरोरा की नजर पड़ गई.. उन्होंने फर्जी तरीके से दिव्यांग लकी के लाखों रुपए हथिया लिये.. और दिव्यांग लकी की अब सुध तक भी नहीं लेते..

बात उस समय की है जब नैनीताल के निवासी सतनाम सिंह और परमजीत कटारिया ने अपनी सुनी कोख को भरने के लिए एक दिव्यांग को गोद लिया.. otism spectrum disorder जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित लकी जैसे जैसे बड़ा होने लगा…लकी की लाईलाज बीमारी माता पिता के लिए चिंता बन गई.. 2017 में दिव्यांग लकी के पिता सतनाम सिंह का निधन के बाद परमजीत… अपने दिव्यांग बेटे के साथ लखनऊ में भाई हरजीत सिंह अरोरा के घर पर रहने लगी.. लेकिन पति की मौत और दिव्यांग बेटे की चिंता में कारोना काल में परमजीत बीमार रहने लगीं.. जिसपर हरजीत सिंह अरोरा ने मां बेटे को घर से निकाल दिया.. और फिर बीमार मां दिव्यांग बेटे को लेकर लखनऊ में रहने वाली अपनी बहन हरदीप सेठी के घर आ गईं.. लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था.. और कारोना काल में दिव्यांग लकी के सिर पर से मां का साया भी उठ गया.. लकी एक बार फिर अनाथ हो गया..

मां परमजीत के निधन के बाद… लकी की देखभाल की जिम्मेदारी परमजीत की बहन हरदीप सेठी पर आ गई.. जो कि एक प्राइवेट नौकरी करतीं थी.. अपनी बहन के वादे को निभाते हुए हरदीप ने लकी को मां की कमी नहीं खलने दी.. लेकिन एक बार फिर लकी की किस्मत पर बदकिस्मती ने वार किया.. और मौसी हरदीप रिटायर हो गई.. अब आर्थिक हालात बिगड़ने लगे.. और फिजियोथैरेपी से लेकर लकी के केयरटेकर का खर्चा निकलना भी मुश्किल हो गया..

लकी की माता पिता को क्या मालूम था.. कि जिस बच्चे के पालन पोषण के लिए वो पैसे छोड़कर जा रहें है.. वो पैसों की रोटी लकी को नसीब ही नहीं मिलेगी..

मामा के लालच का शिकार दिव्यांग लकी अपने लिए इंसाफ मांगना तो दूर.. हाथ तक नहीं फैला सकता… उधर मामा हरजीत सिंह अरोरा ने फोन पर बात करने की बजाए घरेलु मसला कहकर दिव्यांग की गुहार पर फुलस्टॉप लगाने की कोशिश की..

ऐसे में लाइलॉज बीमारी लिए दिव्यांग लकी की दास्तां आखिर कब और कौन सुनेगा ?

लकी को आखिर कब मिलेगा इंसाफ ?

कौन लड़ेगा दिव्यांग लकी की लड़ाई ?

लकी नम आंखों में आशा की किरण साफ देखी जा सकती है.. इन सभी सवालों के जवाब जरुर मिलेंगे… कहते है ना कि उसके घर देर है अंधेर नहीं.

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