UPCM सरकार में स्वास्थ्य व्यवस्था बनी धन उगाही का केंद्र
उत्तर प्रदेश।
UPCM सरकार जहां एक तरफ स्वास्थ्य व्यवस्था को मजबूत करने में लगी है वहीँ दूसरी तरफ बाराबंकी के देवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कर्मचारी स्वास्थ्य व्यवस्था को कमाई का जरिया बना चुके हैं। एक तरफ जहां सरकार जननी सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करती हैं वहीं दूसरी तरफ जब हम जिलों में उतरते हैं, तो तस्वीर कुछ और ही नजर आती हैं।
जी हम बात कर रहे हैं राजधानी लखनऊ से सटे जिले बाराबंकी जिले की जहाँ जब ग्रामीण CHC का मुआयना करने हमारी UPCM NEWS की टीम निकली तो चलते चलते हमारी नजर देवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर पड़ी। जब हमने निरीक्षण किया तो कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आए। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को सरकारी कर्मचारियों ने कमाई का जरिया बना रखा था। दवाएं बाहर से लिखी जाती थी, मरीजों से इलाज के बदले पैसे लिए जाते थे।
इलाज के नाम पर गर्भवती महिला से वसूला जा रहा पैसा
CHC का मुआयना करते करते हैं हमारी मुलाकात 9 महीने की गर्भवती महिला सुमन कुमारी से हुई और जब हमने सुमन से बात करी तो जो उसने बताया वह सुनकर हमारे होश फाख्ता हो गए। इस गर्भवती महिला का नौवा महीना चल रहा था, महिला दर्द से कराह रही थी पर अस्पताल के कर्मचारियों का क्या है साहब? उन्हें तो सिर्फ पैसे से मतलब है, चाहे कोई दर्द से परेशान हो या फिर मर भी क्यों ना जाए? जब इस गर्भवती महिला ने अपनी आपबीती सुनाई तो हमारा जहन भी दर्द से सिहर उठा। महिला का साफ तौर पर कहना था कि जब से वह यहां पर आई है ना ही कोई डॉक्टर उनका हालचाल पूछने आया। हालचाल तो बहुत दूर की बात है साहब! कर्मचारियों ने पैसे उगाही के लिए इस महिला को भी नहीं बख्शा। महिला ने अस्पताल के ही एक कर्मचारी अजय पर आरोप लगाया कि उसने 100 रु. का डिमांड किया और कहा है कि जब तक 100 रुपए नहीं मिलेंगे तब तक तुम्हें इंजेक्शन नहीं लगेगा।
क्या कहते हैं अधीक्षक साहब?
इस विषय में जब हमने CHC के अधीक्षक मामूद खान से बात करनी चाही तो पता चला कि साहब निरीक्षण के लिए क्षेत्र में निकले हैं। खैर हमने उनका फोन नंबर लेकर उन्हें कॉल किया और लगभग आधे घंटे बाद महमूद खान CHC पहुंचे जब हमने उनसे सुमन कुमारी महिला के विषय में प्रश्न पूछा तो उन्होंने आरोपों से साफ इनकार कर दिया। ऐसे में हमने खुद जाकर उनका सामना उस गर्भवती महिला सुमन कुमारी से कराया और उस महिला ने बड़े ही निडर भाव से सारी बात फिर से अधीक्षक महोदय के मुंह पर दोहरा डाली, फिर क्या था अधीक्षक महोदय निरुत्तर हो गए?
CHC में फैली अराजकता के विषय पर जब हमने अधीक्षक महोदय से ऑन कैमरा बात करनी चाहिए तो अधीक्षक महोदय ने हमें भी नहीं बख्शा और हमारे साथ अभद्रता कर डाली, फिर शायद उन्हें लगा की वो कुछ ज्यादा भड़काऊ हो गये लेकिन साहब को याद आया की मीडिया है ये मरीज नही। फिर उन्होंने वही पुराना रटा-रटाया जवाब दिया, इस पर अधीक्षक महोदय महमूद खान का कहना था कि यदि महिला लिखित में शिकायत करती है तो इस पर एक्शन जरूर होगा। ऑन कैमरा जब बात करते हुए हमने अधीक्षक महोदय से कहा कि आपके सामने ही तो उस महिला ने आरोप लगाए हैं तो अधीक्षक महोदय का कहना था कि मुंह से आरोपों का क्या होता है हमें तो लिखित में शिकायत चाहिए।
अब सवाल उठता है कि 9 महीने की गर्भवती महिला अपना इलाज करवाए या फिर उन्हें लिखित शियक करें? अधीक्षक साहब को सरकार की धज्जियां उधने में कुछ ज्यादा ही मजा आ रह है और अपने वसूली कर्मचारी को बचाने में पीछे नही हट रहे हैं जो यह दर्शाता है कि अधीक्षक को सारी जानकारी होने के बाद ही CHC में मरीजों को लुटने का कम चल रहा है।
अल्ट्रासाउंड के भी लेते हैं कर्मचारी पैसे
खैर बात यही तक रुक जाती तो क्या बात थी? जब हम खबर खत्म करके CHC से निकल ही रहे थे कि तभी हमें एक बुजुर्ग मिल गए इस बुजुर्ग आदमी का आरोप था कि उनके क्षेत्र के बीडीसी वीरेंद्र यादव की पत्नी का जब अल्ट्रासाउंड कराने के लिए वह लोग आए। तो कर्मचारियों ने उस BDC को भी नहीं छोड़ा और उससे भी पैसे की डिमांड कर डाली। गौर करने वाली बात यह है कि BDC सरीखे नेताओं तक से पैसे की उगाही कर ली जाती है तो आम जनता का क्या हाल होगा, यह तो सोचने वाली बात है? खैर BDC वीरेंद्र यादव ने एक जागरूक नागरिक होने के तहत लिखित में शिकायत दी।
अधीक्षक साहब का तेज दिमाग तो देखिए, साहब ने केवल साइन करके उनकी शिकायत रिसीव कर ली। जब बीडीसी वीरेंद्र यादव ने वह एप्लीकेशन हमें दिखाई तो हमने कहा कि इसपर अस्पताल की अधीक्षक की मुहर कहां है? दोबारा फिर वह बुजुर्ग आदमी जो BDC के साथ में था वह अधीक्षक के पास गया और लगभग आधे घंटे माथापच्ची करने के बाद अधीक्षक साहब ने सुचारु रुप से एप्लीकेशन को एक्सेप्ट किया।
डॉक्टर लिखते हैं अधिकतर बाहर की दवाई ताकि मिलता रहे कमीशन
आरोप ढूंढने की राह में जब हम आगे बढ़े तो हमारी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिसने हमें विधिवत बताया कि साहब यह लोग कभी अंदर की दवाई नहीं देते हमेशा बाहर की दवाइयां लिखते हैं। अगल-बगल मेडिकल स्टोर खुले हुए हैं जहां से डॉक्टरों की सांठगांठ है और इनका कमीशन बंधा हुआ है इसीलिए डॉक्टर कभी अंदर की दवाइयां लिखते ही नहीं हैं। जब इन आरोपों की हमने पड़ता है करना शुरू की तो हमें पता चला कि लगाया गया आरोप तकरीबन सही है क्योंकि हर एक व्यक्ति कहता है तो शायद इस बात पर हमें यकीन ना होता, लेकिन जब अस्पताल के आसपास के दुकानदारों ने हमसे कहा कि यह आरोप बिल्कुल सही है। खेल सालों से यूं ही बदस्तूर जारी है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि जहां एक तरफ सरकार स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा बजट खर्चा करती है वहीँ डॉक्टर इस तरह स्वास्थ्य सेवाओं को पलीता लगाएंगे तो स्वास्थ्य सेवाएं सुचारु रुप से कैसे चल सकेंगी? मामूद खान जैसे डॉक्टर अपने पेशे को कलंकित करते हैं क्योंकि उन्हें गर्भवती महिला की शिकायत मुंह से नहीं, लिखित में चाहिए होती है और शिकायत करने के बाद भी उसके स्वास्थ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। तो फिर सरकार के जननी सुरक्षा अभियान को कौन आगे बढ़ाएगा यह एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाता है?
ख़ास रिपोर्ट – मुख्यमंत्री के स्वास्थ्य विभाग की धज्जियां उड़ा रहा बाराबंकी का देवा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र