UPCM पुनर्जीवित करेंगे प्रदेश की पवित्र विलुप्त नदियां

उत्तर प्रदेश।
UPCM की अब ख़ास नज़र लखनऊ की गोमती हो या अयोध्या की पौराणिक तमसा नदी, प्रतापगढ़ की सई हो या काशी की वरूणा, बरेली की अरिल हो या बदायूं की सोत नादियों पर होगी।

देश के PM हो या उत्तर प्रदेश के पूर्व UPCM, राजनीति में नदियों के नाम पर राजनीति हमेशा गर्म रही है। उत्तर प्रदेश की राजनीति कहीं न कहीं वाराणसी की वरुणा से अयोध्या की पौराणिक नदी तमसा होते हुए लखनऊ की गोमती नदी तक सुर्खियों में रही है। ऐसे में तत्कालीन UPCM ने प्रदेश की विलुप्त नदियों को पुनर्जीवित करने का इरादा बना लिया है। विलुप्त नदियां महाकुम्भ 2019 तक अस्तित्व में वापस आ सकती हैं।

इसके अंतर्गत प्रथम चरण में पीलीभीत की अविरल और निर्मल बनाने के लिए जन-जन के सहयोग से विशाल जन आन्दोलन UPCM के मार्गदर्षन में चलाया जायेगा। UPCM की इस पहल को सिचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा क़ि “पुरातन नदियों को सदानीरा बनाने के लिए चरणबद्व कार्य योजना तैयार की गई है। पवित्र नदियों के संरक्षण, संर्वधन एवं अनुरक्षण कार्यक्रम को विषाल जन सहभागिता के आधार पर प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है। इसके अन्तर्गत अपनी पहचान खो चुुकी नदियों को जन सहभागिता से पुनर्जीवित किया जायेगा”।

सिचाई मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया कि इस अभियान से जन जागरण कार्यक्रम की रूप रेखा तैयार कर ली गई है। आदिगंगा के नाम से विख्यात पावन गोमती नदी की उद्गम स्थल जनपद पीलीभीत में 10 मार्च 2018 शनिवार को एक विषाल जन जागरण कार्यक्रम पीलीभीत के गांधी प्रेक्षाग्रह में आयोजित किया जा रहा है। इसमें पूज्यनीय साधू संतो के अलावा सांसद, विधायक गण सहित सभी अन्य जन प्रतिनिधियों (अध्यक्ष जिलापंचायत, ब्लाकप्रमुख, उपाध्यक्ष सिंचाई बंधु, सदस्य BDC, ग्रामप्रधान आदि) स्वैच्छिक संस्थाओं, सामाजिक संगठनों, सुप्रसिद्व उद्यमियों, सहित्यकारों, प्रबुद्व पत्रकारों की सहभागिता आमंत्रित की गई है।

कार्यक्रम में विशेष तौर पर जल-पुरुष की उपाधि से विभूषित राजेन्द्र सिंह को आमंत्रित किया गया है। इससे पहले भी सिंचाई मंत्री ने प्रदेश की छः नदियाँ जिन्दा करने की बात कही थी।

प्रदेश इन बड़ी नदियों के अलावा और भी नादियां है विलुप्त के कगार पर, आईये डालते हैं एक नजर-

  • घरेरा – ये नदी टड़ियावां में कभी जानी जाती थी। टड़ियावां के काला आम से होते हुए करप्रताप नगर चौराहे से निकल कर सीतापुर बार्डर पर बहने वाली यह नदी गोमती में मिलती थी। कभी हरी-भरी घाट वाली इस नदी के साक्ष्य और स्थान ही मौजूद हैं, पर जल नहीं है।
  • कल्याणी – हरपालपुर के पंचनद नदी से निकलने वाली कल्याणी नदी मलवा, अखवेलपुर और मल्लावां से होकर गंगा नदी में मिल जाती थी। एक समय में इस नदी की कल-कल की आवाज लोगो को मुग्द कर देती थी। लेकिन ये नदी अब विलुप्त हो गई है, नदी के साक्ष्य और स्थान आज भी मौजूद हैं।
  • सुखेता – भरखनी के पाली क्षेत्र से निकलने वाली सुखेता नदी का कुछ अंश अभी बाकी हैं। लेकिन नदी सिर्फ बरसातों में ही नजर आती और गर्मियों में पानी के स्थान पर सिर्फ पत्थर ही दिखाई पड़ते हैं।

UPCM के हरकत में आने के बाद हरदोई की विलुप्त इन नदियों को अस्तित्व में लाने के लिए सभी सम्बंधित विभागों को निर्देशित कर दिया गया है। सीडीओ वियोधन ने परियोजना निदेशक डीआरडीए समेत लघु सिंचाई, वन विभाग, सिंचाई विभाग, पीडब्ल्यूडी, मत्स्य पालन, रेशम पालन, उद्यान विभाग, भूमि संरक्षण विभाग सहित अन्य विभागों को विशेष कार्य योजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं।

UPCM सरकार की नदियों को पुनर्जीवित करने की मुहिम काबिले तारीफ है। हरदोई में बहने वाली पांच नदियों के अलावा कुछ सहायक नदियां जो विलुप्ति की कगार पर हैं, उनके पुनर्जीवित हो जाने से किसानों को जल की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा और कहीं ना कहीं यह कदम हरदोई के लिए अमृत साबित होगा। गंगा, रामगंगा, गर्रा, गंभीरी व गोमती हरदोई के कटरी और कटियारी क्षेत्र से होकर बहती आई हैं। इनके अलावा हरदोई के आसपास के इलाकों से गर्मी में सूखने वाली नदियां जैसे टडियावा क्षेत्र से बहने वाला भैंसटा बेनीगंज क्षेत्र का घरेरा हरपालपुर की कल्याणी व भरखनी का सूखेता नाला गर्मी के दिनों में अस्तित्व विहीन हो जाती है और बरसात आने पर जल के कलरव से गुंजायमान हो जाती है। अगर इन गर्मियों में सूख जाने वाले नालों को अस्तित्व विहीन होने से सरकार बचा रही है तो जनता, किसान, जानवरों और असिंचित जमीनों के लिए सराहनीय कदम होगा। जो आने वाले समय में जल की समस्या से निजात दिलाने वाला कदम दिखाई दे रहा है।

अब देखना ये होगा कि 2019 के महाकुम्भ के पावन पर्व तक UPCM विलुप्त इन नदियों के अस्तित्व को वापस लाने में कामयाब होते और साथ ही जनता को तोहफ़े के रूप में इन पवित्र नादियों को पुनर्जीवित करने में कामयाब होते हैं या प्रदेश की राजनीति में अभी ये नदियाँ, विलुप्त ही रहेंगी।

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