उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद द्वारा निम्नलिखित महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए :-
उ0प्र0 निर्यात प्रोत्साहन नीति 2025-30 के प्रख्यापन का प्रस्ताव स्वीकृत
मंत्रिपरिषद ने उत्तर प्रदेश निर्यात प्रोत्साहन नीति 2025-30 के प्रख्यापन के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। इस नीति में प्रदेश के निर्यात को बढ़ावा देने के नवीन उपायों तथा डिजिटल तकनीकी पर विशेष बल दिया गया है।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश सरकार द्वारा राज्य से निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 29 अक्टूबर, 2020 को उत्तर प्रदेश निर्यात नीति 2020-25 घोषित की गई। भारत सरकार की विदेश व्यापार नीति 2023 के साथ समन्वय स्थापित करते हुए, प्रदेश में प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों की उपलब्धता तथा अन्तरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध अवसरों, प्रदेश में विद्यमान सम्भावनाओं के उपयोग, युवाओं के लिए रोजगार सृजन, निर्यात की दिशा में त्वरित वृद्धि तथा प्रदेश में निर्यातपरक वातावरण के सृजन के उद्देश्य से उपयुक्त रणनीतियों को समावेशित करते हुए उत्तर प्रदेश निर्यात प्रोत्साहन नीति 2025-30 तैयार की गई है।
इस नीति का उद्देश्य उत्तर प्रदेश को वैश्विक मान्यता प्राप्त निर्यात हब (एक्सपोर्ट हब) के रूप में स्थापित करना है। नीति के मिशन में निर्यात के क्षेत्र में विकास एवं प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना, निर्यात प्रोत्साहन निकायों एवं निर्यात सहायक संस्थाओं को आवश्यक सहायता व सेवाएं प्रदान करना, राज्य में निर्यात में वृद्धि हेतु तकनीकी एवं भौतिक अवसंरचनाओं की स्थापना एवं विकास, निर्यात सामर्थ्य के विकास हेतु उद्योगों को आवश्यक समर्थन प्रदान करना, स्थानीय/देश में निर्मित उत्पादों हेतु वैश्विक बाजार में उपलब्ध अवसरों का चिन्हांकन करना तथा निर्यात सम्बन्धी सर्वश्रेष्ठ प्रक्रियाओं को अंगीकृत करते हुए क्षमता विकास को प्रोत्साहित करना शामिल है।
प्रदेश में निर्यातकों को व्यापक समर्थन प्रदान करने हेतु प्रथम बार डाक घर निर्यात केन्द्र से होने वाले निर्यात, ई0सी0जी0सी0 कवरेज पर होने वाले व्यय पर अनुदान प्रदान करने के साथ-साथ परफॉरमेन्स लिंक्ड इन्सेन्टिव्स प्रदान किए जाने की व्यवस्था नवीन नीति में की गई है। इससे प्रदेश के नवोदित निर्यातक व स्टार्टअप्स विशेष रूप से लाभान्वित होंगे। नवीन निर्यात नीति में वर्तमान प्रचलित उपादान आधारित योजनाओं में प्रदत्त विभिन्न मदवार उपादान की दरों में प्रभावी वृद्धि की गई है। साथ ही, अल्प मात्रा में निर्यात करने वाले प्रदेश के उद्यमियों को समर्थन प्रदान करने हेतु प्रथम बार एल0सी0एल0 शिपमेन्ट्स पर उपादान दिया जाना भी प्रस्तावित है।
वित्तीय उपादान के अतिरिक्त नवीन नीति में ईज़ ऑफ डुइंग एक्सपोर्ट की अवधारणा पर कार्य करते हुए स्थानीय स्तर पर ट्रेड फैसिलिटेशन सेन्टर मार्केट रिसर्च, मिशन निर्यात प्रगति, प्रभावशाली शिकायत निवारण प्रणाली तथा वन स्टॉप डिजिटल इन्फॉर्मेशन हब स्थापित करने की व्यवस्था की गई है, जो निर्यातकों को अधिक जवाबदेह और मैत्रीपूर्ण ईकोसिस्टम सुनिश्चित करेगा।
भारत सरकार द्वारा चिन्हित चैम्पियन सर्विस सेक्टर के अनुरूप प्रदेश में प्रथम बार सेवा क्षेत्र के निर्यातकों को भी उपदान प्रदान किए जाने की व्यवस्था करते हुए नवीन नीति को निर्यातकों हेतु अधिक उपयोगी व मैत्रीपूर्ण बनाया गया है।
यह नीति एक्सपोर्ट नेटवर्क को विस्तारित करने पर बल देती है, जिसके अनुसार वित्तीय वर्ष 2030 तक पंजीकृत निर्यातकों की संख्या में 50 प्रतिशत तक की वृद्धि की जा सके। नीति के माध्यम से निर्यात गतिविधियों में सभी जनपदों की भागीदारी को बढ़ावा देकर क्षेत्रीय संतुलन सुनिश्चित किया जाएगा।
नीति के प्रभावी क्रियान्वयन, अनुश्रवण तथा रणनीतिक निष्पादन सुनिश्चित करने के लिए निर्यात प्रोत्साहन ब्यूरो, उत्तर प्रदेश में प्रोजेक्ट मैनेजमेन्ट यूनिट स्थापित की जाएगी।
पारिवारिक सदस्यों के मध्य निष्पादित विभाजन विलेख में देय स्टाम्प शुल्क एवं रजिस्ट्रीकरण शुल्क में छूट दिए जाने के सम्बन्ध में
मंत्रिपरिषद ने पारिवारिक सदस्यों के मध्य निष्पादित विभाजन विलेख में देय स्टाम्प शुल्क एवं रजिस्ट्रीकरण शुल्क की अधिकतम सीमा 05 हजार रुपये निश्चित कर दिए जाने के प्रस्ताव को कतिपय शर्तों के अधीन स्वीकृति प्रदान की है।
यह छूट परिवार के सदस्यों के अन्तर्गत एक विभाजन विलेख, जो अधिकतम तीन पीढ़ी के एकरेखीय वंशजों के मध्य पैतृक अचल सम्पत्ति के विभाजन से सम्बन्धित हो, पर ही, उपलब्ध होगी। यह छूट केवल उन विभाजन विलेखों पर ही उपलब्ध होगी जहाँ पारिवारिक सदस्यों के बीच पैतृक अचल सम्पत्ति का बँटवारा वर्तमान उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार उत्तराधिकारियों को प्राप्त होने वाले वैधानिक अंश के अनुरूप किया गया हो।
छूट प्राप्त करने हेतु पक्षकारों को उक्त तीन पीढ़ियों का उल्लेख करते हुए विलेख में एक पारिवारिक वृक्ष/वंशावली प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। जिसमें प्रत्येक जीवित व्यक्ति को विधि के अनुसार प्राप्त होने वाले हिस्से के मूल्यांकन को अंकित किया जाएगा। यह छूट मात्र वास्तविक व्यक्तियों के स्वामित्वाधीन सम्पत्तियों के विभाजन पर उपलब्ध रहेगी। ‘कल्पित व्यक्तियों’ यथा फर्म, कम्पनी ट्रस्ट व संस्था आदि के स्वामित्वाधीन सम्पत्तियों पर कोई छूट उपलब्ध नहीं रहेगी।
यह छूट मात्र आवासीय, व्यावसायिक एवं कृषि सम्पत्ति के बँटवारे पर उपलब्ध रहेगी। अन्य प्रकार की सम्पत्ति यथा औद्योगिक, संस्थागत सम्पत्ति इत्यादि की विभाजन पर यह छूट उपलब्ध नहीं रहेगी।
ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश एक लोक कल्याणकारी राज्य है तथा देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य भी है। प्रदेश में बहुत बड़ी संख्या में जनसामान्य के पास संयुक्त/अविभाजित सम्पत्ति है। बँटवारा विलेख का रजिस्ट्रेशन अधिनियम-1908 की धारा-17 के अनुसार अनिवार्य है। जबकि ऐसी संयुक्त/अविभाजित सम्पत्ति के बँटवारा विलेख पर प्रभार्य स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्रीकरण शुल्क की धनराशि अधिक होने के कारण ऐसे विलेखों का रजिस्ट्रेशन कराये जाने की प्रवृत्ति आम जनमानस में कम है। संयुक्त/अविभाजित सम्पत्तियों के बँटवारे सम्बन्धी मुकदमें दीवानी और राजस्व न्यायालयों में काफी अधिक संख्या में लम्बित है।
विभाजन विलेख एक ऐसा विलेख है जिसके द्वारा किसी सम्पत्ति के सहस्वामी आपस में सम्पत्ति का बँटवारा करते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा आपस में पारिवारिक सम्पत्ति या निजी सम्पत्ति के विभाजन हेतु सामान्यतः दानपत्र के अतिरिक्त बँटवारा-पत्र (विभाजन विलेख/Partition Deed) निष्पादित किये जाते हैं।
यदि पारिवारिक सम्पत्ति के विभाजन पर देय स्टाम्प शुल्क एवं रजिस्ट्रीकरण शुल्क को इतना कम कर दिया जाए कि पारिवारिक सदस्य बिना आर्थिक बोझ महसूस किये ऐसे विलेख को सहजता से निष्पादित करने लगे तो लोगों की कठिनाई कम हो जाएगी तथा जहाँ सम्पत्ति का युक्तियुक्त वितरण/विभाजन परिवार के सदस्यों के मध्य होगा, वही सम्बन्धित सम्पत्ति में परिवार के सदस्यों के पास उचित समय पर ही विनिर्दिष्ट स्वामित्व विलेख उपलब्ध हो जाएगा। ऐसी सम्पत्ति बाजार में सहजता से उपलब्ध होगी।
परिवार में सम्पत्ति के सौहार्दपूर्ण बँटवारे के लिए विभाजन विलेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपकरण है। बहुधा अचल सम्पत्ति के विवाद माननीय न्यायालयों में बहुत अधिक अवधि तक लम्बित रहते हैं और पारिवारिक विवाद हल नहीं हो पाते हैं। सम्पत्ति के विवाद में परिवारजनों के मध्य हिंसक घटनाएं भी हो जाती हैं। कई बार आपसी सहमति होने के बावजूद यह विलेख इस कारण से निष्पादित नहीं हो पाते हैं कि इस पर प्रभार्य शुल्कों की देयता, सम्पत्ति के मूल्य के अनुसार आगणित किये जाने का प्रावधान है, जो काफी व्ययसाध्य होता है।
ऐसे विभाजन विलेखों के पंजीकरण के पश्चात राजस्व विभाग द्वारा खतौनी/अधिकार अभिलेख नामान्तरण पश्चात अद्यतनीकृत होंगे एवं पारिवारिक विवादों में कमी आएगी।
तमिलनाडु, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों द्वारा पैतृक अचल सम्पत्ति के बँटवारा विलेख पर प्रभार्य स्टाम्प शुल्क एवं रजिस्ट्रेशन शुल्क को कम करते हुए ऐसे लेखपत्रों के रजिस्ट्रीकरण को प्रोत्साहित किया गया, जिससे अचल सम्पत्ति सम्बन्धी पारिवारिक विवादों का सहज एवं शांतिपूर्ण निराकरण कराया जा सके। उत्तर प्रदेश में भी प्रस्तावित व्यवस्था लागू होने से समान परिणाम प्राप्त हो सकेंगे।
प्रदेश में पारिवारिक बंटवारा विलेख पर प्रभार्य स्टाम्प शुल्क एवं रजिस्ट्रेशन शुल्क के सरलीकरण से रजिस्ट्रीकरण को प्रोत्साहन मिलेगा। इससे संयुक्त/अविभाजित सम्पत्ति के सहस्वामियों द्वारा विभाजित सम्पत्ति पर स्वामित्व प्राप्त होगा। ऐसी सम्पत्तियां पुनः अंतरण अथवा अन्य प्रयोजन हेतु उपलब्ध होंगी। ऐसे विलेखों पर नियमानुसार प्रभार्य स्टाम्प शुल्क सुनिश्चित होने से शासन को प्राप्त होने वाले राजस्व में पर्याप्त वृद्धि होगी।
विभाजन विलेख पर रजिस्ट्रीकरण शुल्क की देयता वर्तमान में शासन की अधिसूचना संख्या-02/2020/127/94-स्टा0नि0-2-2020-700(74)/2015 दिनांक 13 फरवरी, 2020 के प्रभाव से, सम्पत्ति के मूल्य पर 01 प्रतिशत रजिस्ट्रीकरण शुल्क प्रभार्य है। साथ ही, प्रावधानों के अनुसार विभाजन विलेख पर सम्पत्ति के मूल्य भाग अथवा सबसे बड़े भाग को छोड़कर शेष अन्य सम्पत्ति के मूल्य पर बॉन्ड विलेख की भाँति अर्थात मूल्य का 4 प्रतिशत स्टाम्प शुल्क देय है।
विभाजन विलेख पर स्टाम्प शुल्क अधिकतम 5000 रुपये एवं रजिस्ट्रीकरण शुल्क पर अधिकतम 5000 रुपये निश्चित कर दिये जाने पर स्टाम्प शुल्क धनराशि 5,58,54,060 रुपये व रजिस्ट्रेशन शुल्क धनराशि 80,67,650 रुपये की राजस्व हानि सम्भावित है।
जितनी बड़ी संख्या में प्रदेश में पारिवारिक सम्पत्ति के विवाद संज्ञान में आते हैं, उनके सापेक्ष रजिस्ट्री कराये जाने वाले विभाजन विलेखों की संख्या बहुत ही कम है। इनसे प्राप्त होने वाला राजस्व, विषय की महत्ता के सापेक्ष नगण्य है। स्टाम्प शुल्क और रजिस्ट्रीकरण फीस की सीमा को अधिकतम 5,000 रुपये निर्धारित किये जाने से विभाजन के विलेखों के पंजीकरण की संख्या में वृद्धि की सम्भावना है।
उ0प्र0 आउटसोर्स सेवा निगम के गठन का प्रस्ताव स्वीकृत निगम आउटसोर्स कर्मियों को न्यूनतम पारिश्रमिक का भुगतान सुनिश्चित कराएगा
निगम के गठन एवं जेम निविदा के माध्यम से चयनित नयी आउटसोर्सिंग एजेन्सी के उपरान्त भी वर्तमान में कार्य कर रहे आउटसोर्सिंग कार्मिकों की सेवाएं ली जाएंगी तथा उन्हें वरीयता प्रदान की जाएगी
निगम समय-समय पर निर्गत कानूनों/शासनादेशों में निहित व्यवस्था के अनुक्रम में आरक्षण सुनिश्चित कराएगा
मंत्रिपरिषद ने कम्पनीज एक्ट-2013 के सेक्शन 8 के अन्तर्गत एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन के रूप में उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम का गठन किए जाने सम्बन्धी प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है।
ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश सरकार के विभिन्न विभागों तथा संस्थाओं में आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्मिकों की सेवाएं प्राप्त की जा रही हैं। विभिन्न विभागों व संस्थाओं में आउटसोर्सिंग पर बड़ी संख्या में कार्मिक रखे गए हैं। आउटसोर्सिंग एजेन्सीज के माध्यम से लगाए गए कार्मिकों को शासन/विभागों से उपलब्ध कराई जा रही पारिश्रमिक की पूर्ण धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जा रही है। कई प्रकरणों में नियमित रूप से ई0पी0एफ0, ई0एस0आई0 आदि न जमा करने की शिकायतें भी हैं।
इसके दृष्टिगत यह आवश्यक हो गया है कि एक ऐसे निगम का गठन किया जाए, जिसके नियंत्रण व देखरेख में आउटसोर्सिंग एजेन्सियां, आउटसोर्स मैनपावर को शासन के विभिन्न विभागों व संस्थाओं को उनकी आवश्यकतानुसार सेवाएं उपलब्ध कराएं। इस प्रकार ऐसी पारदर्शी व्यवस्था बनायी जाए, जिसके माध्यम से आउटसोर्स इम्प्लाईज की सेवाएं विभिन्न विभागों में समस्त प्रदेश में उपलब्ध कराई जा सकें।
इस व्यवस्था को लागू करने के लिए उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम के गठन का निर्णय लिया गया है। यह निगम एक नियामक निकाय की भांति कार्य करेगा और अपने अधिकार क्षेत्र के अन्तर्गत कानूनों, नियमों एवं मानकों के माध्यम से आउटसोर्सिंग एजेन्सी के कार्य-कलापों/कार्य प्रक्रिया एवं कार्य-गतिविधि के कमाण्ड एवं नियंत्रण हेतु मानकों को स्थापित करेगा।
उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम आउटसोर्सिंग एजेन्सी के माध्यम से शासन के समस्त विभागों एवं संस्थाओं को स्किल्ड, सेमीस्किल्ड एवं अनस्किल्ड मैनपावर उपलब्ध कराएगा। इसके अलावा, कार्मिकों को नियमों व कानूनों के अन्तर्गत स्टेट्यूटरी ड्यूज के साथ पूर्ण पारिश्रमिक का भुगतान आउटसोर्सिंग एजेन्सियों के माध्यम से सुनिश्चित कराना निगम का दायित्व होगा। निगम आउटसोर्स कर्मियों को न्यूनतम पारिश्रमिक का भुगतान सुनिश्चित कराएगा।
यह निगम आउटसोर्सिंग एजेन्सियों से प्रत्येक माह की 05 तारीख को पारिश्रमिक तथा ई0पी0एफ0 व ई0एस0आई0 की धनराशि कार्मिक के खाते में जमा कराया जाना सुनिश्चित कराएगा। कार्मिकों का ई0पी0एफ0 तथा ई0एस0आई0 खाता खुलवाएगा। कार्मिकों की कार्यक्षमता/दक्षता बढ़ाए जाने हेतु समय-समय पर प्रशिक्षण की व्यवस्था करेगा। अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, ई0डब्ल्यू0एस0, दिव्यांगजन, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के आश्रित, भूतपूर्व सैनिकों एवं महिलाओं इत्यादि को समय-समय पर निर्गत कानूनों/शासनादेशों में निहित व्यवस्था के अनुक्रम में आरक्षण सुनिश्चित कराएगा। आरक्षण की व्यवस्था निगम की स्थापना से नवीन आउटसोर्सिंग सेवाओं पर लागू होगी, पूर्व की सेवाओं/मैनपावर पर नहीं।
उत्तर प्रदेश आउटसोर्स सेवा निगम (यू0पी0सी0ओ0एस0) के गठन एवं जेम निविदा के माध्यम से चयनित नयी आउटसोर्सिंग एजेन्सी के उपरान्त भी वर्तमान में कार्य कर रहे आउटसोर्सिंग कार्मिकों की सेवाएं ली जाएंगी तथा उन्हें वरीयता प्रदान की जाएगी।
जनपद कानपुर नगर, लखनऊ तथा उनके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (NCC) मॉडल पर ई-बसों को संचालित किए जाने के सम्बन्ध में
मंत्रिपरिषद ने जनपद कानपुर तथा लखनऊ एवं उसके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (NCC) मॉडल पर ई-बसों को संचालित कराए जाने सम्बन्धी आर0एफ0पी0 अभिलेख और ड्राफ्ट कन्सेशन एग्रीमेण्ट को अनुमोदित किया है। मंत्रिपरिषद ने परियोजना प्रस्ताव की अन्तर्वस्तु में संशोधन/परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता होने पर पी0पी0पी0 बिड इवैल्युएशन कमेटी की संस्तुति के आधार पर आर0एफ0पी0 अभिलेख और ड्राफ्ट कन्सेशन एग्रीमेण्ट में आवश्यक सुसंगत संशोधन हेतु नगर विकास मंत्री को अधिकृत किया है।
उल्लेखनीय है कि नगर विकास विभाग द्वारा प्रदेश के 15 नगर निगमों में 743 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है, जिसमें से 700 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (GCC) मोड पर किया जा रहा है। राज्य सरकार के राजस्व जोखिम को न्यूनतम करने तथा सेवा प्रदाता को यात्रियों को आकर्षित करते हुए अधिक व्यावसायिक स्वतन्त्रता और प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (NCC) मॉडल पर जनपद लखनऊ एवं कानपुर नगर तथा उनके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में ई-बसों को संचालित किए जाने का निर्णय लिया है।
इसके अन्तर्गत जनपद लखनऊ एवं कानपुर नगर तथा उनके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में 10-10 मार्गों/रूटों पर 09 मीटर ए0सी0 ई-बसों का संचालन किया जाएगा। कॉन्ट्रैक्ट की अवधि वाणिज्यिक संचालन तिथि से 12 वर्ष की होगी। सरकार द्वारा जिस रूट हेतु निजी ऑपरेटरों को नियुक्त किया जाएगा, उस रूट हेतु कोई अन्य निजी ऑपरेटर नियुक्त नहीं किया जाएगा।
प्रत्येक रूट पर न्यूनतम 10 ए0सी0 ई-बसें संचालित की जाएंगी। इनके संचालन पर 10.30 करोड़ रुपये के व्यय की सम्भावना है, जिसमें ई-बसों की खरीद पर 09.50 करोड़ रुपये तथा चार्जर एवं अन्य उपकरण पर 80 लाख रुपये का व्यय सम्मिलित है। वित्त की व्यवस्था निजी ऑपरेटर द्वारा इक्विटी, वाणिज्यिक उधारी या लीज के माध्यम से की जाएगी। एग्रीमेण्ट के 90 दिन के अन्दर निजी ऑपरेटर द्वारा प्रोटोटाइप ई-बस उपलब्ध करायी जाएगी। सरकार द्वारा प्रोटोटाइप की समुचित समीक्षा के बाद निजी ऑपरेटर द्वारा बसों की आपूर्ति सुनिश्चित की जाएगी। निजी ऑपरेटरों द्वारा एक वर्ष के अंदर ई-बसों का संचालन प्रारम्भ कराया जाएगा।
चयनित निजी बस ऑपरेटरों द्वारा इलेक्ट्रिक बसों (चार्जिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर सहित) की डिजाइन, वित्त, क्रय/निर्माण और आपूर्ति की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी। अनुरक्षण सुविधा, संयन्त्रों, उपकरणों और अन्य अवसंरचना की स्थापना भी की जाएगी। निजी बस ऑपरेटरों द्वारा 100 प्रतिशत किराया संग्रह एवं गैर किराया संग्रह एकत्र किया जाएगा।
टैरिफ/प्रयोक्ता शुल्क निर्धारण सरकार द्वारा किया जाएगा तथा इसकी समझौता, शर्तों के अनुसार पुनरीक्षित किया जा सकेगा। सरकार द्वारा परिवहन विभाग/क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण (आर0टी0ओ0/आर0टी0ए0) से रूट लाइसेंस (स्टेज केरिज परमिट) प्राप्त किया जाएगा तथा निजी ऑपरेटरों को विशिष्ट मार्गों पर बसें संचालित करने की अनुमति दी जाएगी। सरकार द्वारा निजी ऑपरेटरों को ई-बसों के संचालन हेतु बिहाइंड-द-मीटर विद्युत अवसंरचना एवं अपॉर्चुनिटी के लिए प्राविधान किया जाएगा।
प्रस्तावित योजना के अन्तर्गत निजी निवेश से न केवल सरकारी व्यय भार कम होगा, बल्कि सेवाओं की गुणवत्ता में भी सुनिश्चित सुधार होगा। निजी ऑपरेटर दक्षता, समयबद्धता एवं उपभोक्ता संतुष्टि पर विशेष ध्यान देंगे। निजी ऑपरेटरों को प्रतिस्पर्धा के लिए प्रेरित किया जाएगा, जिससे नवीनतम तकनीकें एवं सेवा सुधार लागू होंगे। निजी ऑपरेटर निविदा प्रक्रिया से चयनित होकर अनुबन्धित किये जाएंगे और संचालन एवं व्यावसायिक जोखिम का दायित्व स्वयं वहन करते हुए समस्त परिचालन कार्यां का निष्पादन करेंगे। शासन की भूमिका लाइसेंसिंग एवं निगरानी तक सीमित रहेगी। इससे सेवाओं की सुगमता, गुणवत्ता तथा वित्तीय उत्तरदायित्व में संतुलन बना रहेगा और उपभोक्ताओं को सीधा लाभ प्राप्त होगा।
उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025 (UP ECMP-2025) स्वीकृत
मंत्रिपरिषद ने ‘उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025‘ (UP ECMP-2025) को स्वीकृति प्रदान कर दी है। यह नीति 01 अप्रैल, 2025 से 06 वर्षों के लिए वैध होगी तथा इसका क्रियान्वयन शासन स्तर पर गठित नीति कार्यान्वयन इकाई सशक्त समिति की देखरेख में नोडल संस्था द्वारा किया जायेगा।
देश में इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में मूल्य श्रृंखला को आगे बढ़ाने के लिए, घटक और सब-असेम्बली के घरेलू विनिर्माण के लिए एक सक्षम वातावरण सृजित करने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने पहल करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण योजना-2025 आरम्भ की है। राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप ही ‘उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025‘ के उद्देश्यों की प्राप्ति में उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौयोगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा अधिसूचित इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण योजना’ को और प्रभावकारी रूप से उत्तर प्रदेश में निवेशकों के लिए लागू करते हुए इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आर्थिक तरक्की, आत्म निर्भरता के साथ बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसरों को बढ़ाये जाने हेतु ‘उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रानिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025’ (UP ECMP-2025) प्रख्यापित की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि इस नीति से उत्तर प्रदेश में निवेश करने वाले उद्यमियों को केन्द्रीय योजना के अधीन प्राप्त प्रोत्साहन के समतुल्य उसी प्रकार अतिरिक्त प्रोत्साहन राज्य सरकार द्वारा भी दिया जायेगा। इससे राज्य में पूर्व से विद्यमान इलेक्ट्रॉनिक उद्योग के ईको-सिस्टम को ग्लोबल विनिर्माण हब के रूप में स्थापित होने में सहायता मिलेगी। ‘उत्तर प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण नीति-2025‘ के अन्तर्गत प्रस्तावित प्रोत्साहनों एवं रियायतों के फलस्वरूप आगामी 06 वर्षों में लगभग 5,000 करोड़ रुपये का व्यय भार अनुमानित है।
इस नीति के क्रियान्वयन से इलेक्ट्रॉनिक्स घटक विनिर्माण क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त होगी। आपूर्ति श्रृंखला सशक्त होगी, नवाचार/अनुसंधान को बढ़ावा मिलने के साथ ही इस क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने में सहायता मिलेगी। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण इकाइयों की स्थापना और औद्योगीकरण के फलस्वरूप प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होगे, जिससे जन-सामान्य का सामाजिक आर्थिक उत्थान होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण इकाइयों की स्थापना और औद्योगीकरण के फलस्वरूप प्रदेश में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे।
स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय, शाहजहांपुर की स्थापना के सम्बन्ध में
मंत्रिपरिषद ने समझौता ज्ञापन (एम0ओ0यू0) की शर्तों के अनुसार ‘स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय, शाहजहांपुर की स्थापना’ किए जाने हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 के प्राविधानों के अनुसार कार्यवाही किए जाने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान की है। मंत्रिपरिषद द्वारा उक्त समझौता ज्ञापन (एम0ओ0यू0) की शर्तों में किसी परिवर्तन की आवश्यकता होने पर तद्नुसार अपेक्षित परिवर्तन हेतु मुख्यमंत्री जी को अधिकृत किया गया है।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में उच्च शिक्षा के सर्वांगीण विकास हेतु मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट, शाहजहांपुर के अंतर्गत संचालित शैक्षणिक इकाईयों को उच्चीकृत करते हुए स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय, शाहजहांपुर की स्थापना किये जाने का अनुरोध मुख्य अधिष्ठाता, मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट द्वारा किया गया है। मुख्य अधिष्ठाता, मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट, शाहजहांपुर द्वारा ट्रस्ट की समस्त चल अचल परिसम्पत्तियों को विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु निःशुल्क राज्य सरकार को उपलब्ध कराया जाएगा।
मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट, शाहजहांपुर के अंतर्गत वर्तमान में 05 इकाइयां-स्वामी शुकदेवानन्द कॉलेज, स्वामी शुकदेवानन्द विधि महाविद्यालय, श्री दैवी सम्पद ब्रह्मचर्य संस्कृत महाविद्यालय, श्री देवी सम्पद इण्टर कॉलेज परिवर्तित नाम श्री धर्मानन्द सरस्वती इण्टर कॉलेज, श्री शंकर मुमुक्ष विद्यापीठ संचालित है।
जिलाधिकारी, शाहजहांपुर की आख्या 26 अप्रैल, 2025 के अनुसार मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट का कुल क्षेत्रफल 8.506 हे0 (21.01 एकड़) है। इसमें से 0.396 हे0 (0.97 एकड़) में आश्रम बाजार की 51 दुकानें (15X30 वर्ग फीट माप की शटरयुक्त) हैं। आश्रम बाजार की 0.97 एकड़ भूमि को छोड़कर शेष 20.039 एकड़ भूमि विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु उपलब्ध है।
जिला मजिस्ट्रेट कार्यालय द्वारा निर्गत हैसियत प्रमाण पत्र दिनांक 16 अप्रैल, 2024 के अनुसार मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट के समस्त शैक्षक संस्थानों की परिसम्पत्तियों (चल-अचल परिसम्पत्तियों) का कुल मूल्य 01 अरब 08 करोड़ 03 लाख 20 हजार मात्र है। मुमुक्ष आश्रम की विभिन्न इकाईयों के भवनों का कुल क्षेत्रफल 33092.12 वर्ग मीटर व मूल्य 71 करोड़ 81 लाख 09 हजार 566 रूपये है।
संस्थान की इकाई-श्री धर्मानन्द सरस्वती इण्टर कॉलेज एवं श्री शंकर मुमुक्ष विद्यापीठ, जो क्रमशः ‘श्री दैवी सम्पद इण्टर कॉलेज, मुमुक्ष आश्रम, शाहजहांपुर सोसायटी’ द्वारा एवं ‘श्री शंकर मुमुक्ष विद्यापीठ समिति, मुमुक्ष आश्रम, शाहजहांपुर सोसायटी’ द्वारा संचालित हैं। प्रस्तावित विश्वविद्यालय की स्थापना के उपरान्त इनका संचालन विश्वविद्यालय द्वारा किया जाएगा। इस हेतु सुसंगत अधिनियम एवं नियमों के आलोक में विश्वविद्यालय द्वारा पृथक सोसायटी का गठन किया जाएगा।
मुख्य अधिष्ठाता, मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट द्वारा किये गये अनुरोध के क्रम में ट्रस्ट की इकाईयों को उच्चीकृत करते हुए स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय, शाहजहांपुर की स्थापना किये जाने का निर्णय लिया गया है। इस हेतु प्रथम चरण में मुख्य अधिष्ठाता, मुमुक्ष आश्रम ट्रस्ट एवं उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश शासन के मध्य समझौता ज्ञापन (एम0ओ0यू0) का निष्पादन किया जाएगा। प्रस्तावित समझौता ज्ञापन (एम0ओ0यू0) की शर्तों के अनुसार स्वामी शुकदेवानंद विश्वविद्यालय, शाहजहांपुर की स्थापना किये जाने हेतु उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम-1973 के प्राविधानों के अनुसार कार्यवाही किये जाने का प्रस्ताव है।
जनपद वाराणसी में समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) की स्थापना हेतु दिव्यांगजन सशक्तिरण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार (डी0ई0पी0डब्ल्यू0डी0) को 03 एकड़ भूमि निःशुल्क हस्तान्तरित किये जाने के सम्बन्ध में
मंत्रिपरिषद ने जनपद वाराणसी, तहसील-सदर के अन्तर्गत मौजा व परगना रामनगर में स्थित आराजी नं0-507 एवं 508 की 03 एकड़ भूमि पर समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) की स्थापना हेतु उक्त भूमि दिव्यांगजन सशक्तिरण विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार (डी0ई0पी0डब्ल्यू0डी0) को निःशुल्क हस्तान्तरित किये जाने के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
उल्लेखनीय है कि सभी श्रेणियों के दिव्यांग व्यक्तियों को सम्यक पुनर्वास सेवायें प्रदान करने, उनके कौशल विकास और सशक्तीकरण के लिये भारत सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों में समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) स्थापित किये गये हैं। इनका उद्देश्य सभी श्रेणियों के दिव्यांगजन को पुनर्वास सेवायें प्रदान करना, पुनर्वास पेशेवरों, कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों को प्रशिक्षित करना, दिव्यांगजन के लिये शिक्षा और कौशल विकास के कार्यक्रम चलाना और उनकी जरूरतों तथा अधिकारों के बारे में माता-पिता और समुदाय के बीच जागरूकता पैदा करना है। साथ ही, दिव्यांग व्यक्तियों और दिव्यांगता पुनर्वास के विशिष्ट संदर्भ में अनुसंधान और विकास करना, दिव्यांग व्यक्तियों के लिये सहायक उपकरणों की डिजाइनिंग, निर्माण, फिटमेण्ट और वितरण का कार्य करना है।
उत्तर प्रदेश में जनपद-लखनऊ एवं गोरखपुर में समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) स्थापित हैं। निदेशक, दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग एवं भारत सरकार के मध्य समझौता ज्ञापन (एम0ओ0यू0) के अनुसार अमरावती दिव्यांगजन संस्थान खुशीपुर, वाराणसी में निर्मित आवश्यकतानुसार कक्षों में समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) वाराणसी का अस्थायी संचालन प्रारम्भ किया गया है।
जनपद-वाराणसी के मौजा एवं परगना-रामनगर में स्थित आराजी नं0 507 एवं 508 की 03 एकड़ भूमि पर समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) की स्थापना हेतु निःशुल्क भूमि का हस्तान्तरण दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार (डी0ई0पी0डब्ल्यू0डी0) को किये जाने से उक्त समेकित क्षेत्रीय केन्द्र (सी0आर0सी0) वाराणसी का स्थायी संचालन प्रारम्भ हो जायेगा।