गोरक्षपीठ में पूज्य आचार्यों की स्मृति में साप्ताहिक आयोजन पीठ की परम्परा का हिस्सा: सीएम योगी

मुख्यमंत्री ने गोरखपुर में ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 56वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 11वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह में सम्मिलित हुए

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। अगर कोई मनुष्य अयोग्य है, तो मानकर चलिए उसे योग्य योजक नहीं मिला। योग्य गुरु मिलने पर मनुष्य अयोग्य हो ही नहीं सकता। इस परिप्रेक्ष्य में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी की सर्वस्वीकार्य प्रतिष्ठा सुयोग्य योजक की रही है।

मुख्यमंत्री से श्री गोरखनाथ मन्दिर, गोरखपुर में युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज की 56वीं तथा राष्ट्रसंत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज की 11वीं पुण्यतिथि के साप्ताहिक पुण्यतिथि समारोह के अन्तर्गत महन्त दिग्विजयनाथ जी महाराज की पुण्यतिथि पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ‘अमन्त्रमक्षरं नास्ति नास्ति मूलमनौषधम्, अयोग्यः पुरुषो नास्ति योजकस्तत्र दुर्लभः’ अर्थात् ऐसा कोई अक्षर नहीं है, जिसमें मंत्र बनने का सामथ्र्य न हो और ऐसी कोई वनस्पति नहीं है, जिसमें औषधीय गुण न हो। इसी प्रकार कोई व्यक्ति अयोग्य नहीं होता, बल्कि व्यक्ति की योग्यता को पहचान कर उसे सही दिशा देने वाले गुरु की आवश्यकता होती है। गोरक्षपीठ के ब्रह्मलीन महंतद्वय ने सदैव योजक की भूमिका का निर्वहन कर समाज और राष्ट्र को दिशा दिखाई। पूर्ववर्ती दोनों पीठाधीश्वरों युगपुरुष ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज और राष्ट्र संत ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी महाराज का पूरा जीवन देश और धर्म के लिए समर्पित था।

मुख्यमंत्री ने कहा कि साधु अकेला होता है। समाज उसका परिवार तथा राष्ट्र उसका कुटुम्ब होता है। उसकी जाति सिर्फ सनातन होती है। संतों के संकल्प में पवित्रता, दृढ़ता होती है। संकल्प में उसकी साधना के अंश होते हैं। जब सच्चा संत कोई संकल्प लेता है तो उसके सकारात्मक परिणाम अवश्य आते हैं। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी ऐसे ही संकल्पों वाले संत थे। अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण के सम्बन्ध में उनके संकल्प और संकल्प के प्रति किए गए संघर्ष का परिणाम आज पूरी दुनिया के सामने है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज का जन्म मेवाड़ की उस कुल परम्परा में हुआ था, जिसने विदेशी आक्रांताओं के सामने कभी समर्पण नहीं किया। वह हिंदुआ सूर्य महाराणा प्रताप की परम्परा से गोरखपुर आए। उनका जीवन सिर्फ आध्यात्मिक उन्नयन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने धर्म के अभ्युदय के साथ समाज और राष्ट्र हित में शिक्षा और सेवा के माध्यम से आमजन के सांसारिक उत्कर्ष को भी महत्व दिया। यही कार्य महंत अवेद्यनाथ जी ने भी किया। सच्चा साधु धर्म के अभ्युदय और निःश्रेयस, दोनों को साथ लेकर चलता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि महंत दिग्विजयनाथ जी गोरखनाथ मंदिर के वर्तमान स्वरूप के शिल्पी थे। उन्होंने इसे सनातन परम्परा के वैभवशाली मंदिर के रूप में स्थापित किया। इसके साथ ही उनकी ख्याति पूर्वी उत्तर प्रदेश में शैक्षिक क्रांति के पुरोधा के रूप में भी है। वर्ष 1932 में उन्होंने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना के साथ ही गोरखपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने का संकल्प लिया था। देश की आजादी के बाद जब गोरखपुर में विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात आगे बढ़ी तो बहुत से लोग पीछे हट गए। तब महंत दिग्विजयनाथ जी ने अपने दो डिग्री काॅलेज दान में देकर विश्वविद्यालय की स्थापना सुनिश्चित करायी। उन्होंने बालिका शिक्षा केंद्र को स्थापित करने का संकल्प बालिका विद्यालय बनवाकर पूरा किया।

मुख्यमंत्री ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने गुलामी के प्रतीकों को हटाने का संकल्प लिया था। अयोध्या में गुलामी की निशानी ढांचे को हटाकर भव्य श्रीराम मंदिर बनाना उनका और ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ जी का संकल्प और सपना था। आज दोनों आचार्यों का यह संकल्प गुलामी के निशान को हटाकर पूरा हो चुका है। उन्होंने कहा कि आज ऐसा कौन भारतीय होगा, जिसे अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर देखकर गर्व न होता हो।

मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के विकसित भारत के उद्घोष का उल्लेख करते हुए कहा कि विकसित भारत केवल राजनीतिक संकल्प नहीं है, बल्कि यह भारत और भारतीयता का मंत्र है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की दृष्टि से भारत ने कभी दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराया था। एकता, भाईचारा और परस्पर जुड़ाव भारत की परम्परा रही है। ऐसा फिर से हो, इसके लिए विकसित और आत्मनिर्भर भारत की आवश्यकता है। इसलिए, हर भारतीय को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ना होगा। जब संकल्प अंतःकरण से होता है तो वह अवश्य पूरा होता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरक्षपीठ में पूज्य आचार्यों की स्मृति में साप्ताहिक आयोजन पीठ की परम्परा का हिस्सा है। मंदिर के अलावा आज महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के सभी संस्थाओं में भी पूज्य आचार्यद्वय के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए आयोजन हो रहे हैं। परम्पराएं हमारी विरासत होती हैं। वर्तमान और भावी पीढ़ी को इनके जरिये प्रेरणा और सीख लेने की जरूरत है। उन्होंने अखण्ड भारत में दुनिया के पहले विश्वविद्यालय, प्रभु श्रीराम के अनुज भरत के पुत्र तक्ष के नाम पर स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय का उल्लेख करते हुए कहा कि पाणिनि का व्याकरण इसी तक्षशिला विश्वविद्यालय से आगे बढ़ा था। महर्षि सुश्रुत और चरक जैसे आयुर्वेद के जनक इसी विश्वविद्यालय से निकले। आयुर्वेद, व्याकरण, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, कृषि सहित अनेक क्षेत्रों के लिए यही प्राचीनतम विश्वविद्यालय रहा है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के आचार्य प्रो0 ओंकारनाथ सिंह की पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति की आत्मसाती

प्रकृति’ और महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जंगल धूसड़, गोरखपुर की वार्षिक पत्रिका ‘विमर्श’ का विमोचन किया।
इस अवसर पर देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए संत-महंत, शिक्षाविद् एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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